Class VII NCERT (CBSE) Hindi Textbook Exercise Solved
(Vasant Bhag 2)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न १: खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का क्या मतलब है? अपने घर के उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें |
उत्तर: खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का
तात्पर्य है सभी प्रान्तों में खानपान के आधार पर मेलजोल होना | भारत में
आज़ादी के बाद उद्योग धंधों, नौकरियों व तबादलों के कारण खानपान की चीज़ें एक
प्रदेश से दुसरे प्रदेश में पहुँची हैं | लोगों ने अपनी पसंद के आधार पर
एक दुसरे प्रांत की खाने की चीज़ों को अपने भोज्य पदार्थों में शामिल किया
है | जैसे आज दक्षिण भारत के व्यंजन इडली-डोसा-साम्भर-रसम उत्तर भारत में
चाव से खाए जाते हैं और उत्तर भारत के ढाबे सारे भारत में महत्व पाते हैं |
यहाँ तक कि पश्चिमी सभ्यता के व्यंजन बर्गर, नूडल्स का चलन भी बहुत बड़ा है
|
मेरा घर उत्तर भारत में है | मैं पंजाबी परिवार से हूँ | दाल-रोटी-साग मुख्य भोजन है लेकिन हमारे घर में दाल-रोटी-साग
से ज्यादा इडली-साम्भर, बर्गर व नूडल्स अधिक पसंद की जाती है | यहाँ तक कि
हम बाज़ार से न लाकर घर में ही सब बनाते हैं क्योंकि आज हर प्रदेश के
व्यंजन बनाने की पुस्तकें भी बाज़ार में उपलब्ध रहती हैं |
प्रश्न २: खानपान में बदलाव के कौन से फायदे हैं? फिर लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित क्यों है?
उत्तर: खानपान में बदलाव से निम्न फायदे हैं -
१. एक प्रदेश की संस्कृति का दुसरे प्रदेश की संस्कृति से मिलना |
२. राष्टीय एकता को बढ़ावा मिलना |
३. बच्चों व बड़ों को को मनचाहा भोजन मिलना |
४. देश-विदेश के व्यंजन मालूम होना |
५. गृहिणियों व कामकाजी महिलायों को जल्दी तैयार होनेवाले विविध व्यंजनों की विधियां उपलब्ध होना |
६. स्वाद, स्वास्थ्य व सरसता के आधार पर भोजन का चयन कर पाना |
खानपान
के बदलाव आने से होनेवाले फायदों के बावजूद लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित
है क्योंकि उसका मानना है कि आज खानपान की मिश्रित संस्कृति को अपनाने से
नुक्सान भी हो रहे हैं जो निम्न रूप से हैं -
१. स्थानीय व्यंजनों का चलन कम होता जा रहा है जिससे नई पीढ़ी स्थानीय व्यंजनों के बारे में जानती ही नहीं है |
२. खाद्य पदार्थों में शुद्धता की कमी होती जा रही है |
३. उत्तर भारत में मिलने वाले व्यंजनों की तो दुर्गति ही होती जा रही है |
प्रश्न ३: खानपान के मामले में स्थानीयता का क्या अर्थ है ?
उत्तर: खानपान के मामले में स्थानीयता का अर्थ है,
किसी विशेष स्थान के खाने-पीने का विशेष व्यंजन जिसका प्रचलन दूर-दूर तक
हो | जैसे - मुम्बई की पाव-भाजी, दिल्ली के छोले-कुलचे, मथुरा के पेड़े व
आगरे के पेठे-नमकीन आदि पहले स्थानीय व्यंजनों का अत्यधिक चलन था | हर
प्रदेश में किसी-न-किसी विशेष स्थान का कोई-न-कोई व्यंजन अवश्य प्रसिद्द
होता था लेकिन आज खानपान की मिश्रित संस्कृति ने लोगों को खाने-पीने के
व्यंजनों में इतने विकल्प दे दिए हैं कि स्थानीय व्यंजन प्रायः लुप्त होते
जा रहे हैं | आधुनिक पीढ़ी तो कई व्यंजनों के नामों से भी अपरिचित है |
दूसरी ओर महँगाई बढ़ने के कारण इन व्यंजनों की गुणवत्ता में कमी होने से भी
लोगों का रुझान इनकी ओर कम होता जा रहा है |
भाषा की बात
प्रश्न १: खानपान शब्द, खान और पान दो शब्दों को जोड़कर बना है | खानपान शब्द में और छिपा हुआ है | जिन शब्दों के योग में और, अथवा, या जैसे योजक शब्द छिपे हों, उन्हें द्वंद समास कहते हैं | नीचे द्वंद समास के कुछ उदाहरण दिए गए हैं | इनका व्याक्यों में प्रयोग कीजिये और अर्थ समझिय:
सीना-पिरोना, भला-बुरा, चलना-फिरना, लंबा-चौड़ा, कहा-सूनी, घास-फूस
उत्तर: हर लड़की को सीना-पिरोना आना चाहिय |
मोहन ने कक्षा में झगड़ा होने पर मुझे भला-बुरा कहा |
रीढ़ की हड्डी पर चोट लग जाने के कारण स्नेहा को चलना-फिरना मना है |
मैंने जंगल में एक लम्बा-चौड़ा वट वृक्ष देखा है |
सास-बहू की कहा-सूनी होना तो आम बात है |
राम, लक्ष्मण और सीता वनवास में घास-फूस की झोपड़ियों में रहे |
CBSE (CCE) pattern additional sample questions + answers
प्रश्न १: स्थानीय व्यंजनों में कमी क्यों आती जा रही है?
उत्तर:
एक ओर तो आधुनिकता के मोह के कारण स्थानीय व्यंजनों में कमी आई है | दूसरी
ओर शहरी जीवन की भागमभाग व समयाभाव भी इसका सबसे बड़ा कारण है क्योंकि
लोगों के पास जटिल प्रक्रियाओं से भोजन तैयार करने हेतु समय ही नहीं होता |
कुछ हद तक महँगाई भी इसके लिए जिम्मेदार है | सामान इतना महँगा होता जा
रहा है कि आम आदमी कई बार मनचाही चीज़ खरीदने में भी असमर्थ रहता है |
प्रश्न २: खानपान संस्कृति का मिश्रित रूप कैसे विकसित हुआ?
उत्तर:
आज़ादी के बाद उद्योग-धंधों,नौकरियों,तबादलों(स्थानान्तरण)के कारण लोगों का
एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाने से मिश्रित व्यंजन संस्कृत का विकास
हुआ| आज तो इस आधार पर देश-विदेश की संस्कृतियाँ भी मिल रही हैं|
प्रश्न ३: खानपान संस्कृति का "राष्ट्रीय एकता" में क्या योगदान है?
उत्तर : खानपान
संस्कृति का राष्ट्रीय एकता में विशेष योगदान है| खाने-पीने के व्यंजनों
का प्रभाव एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में बढ़ता जा रहा है जैसे-उत्तर के
व्यंजन दक्षिण में व दक्षिण के व्यंजन उत्तर में प्रसिद्दि पाते जा रहे
हैं| इससे लोगों का मेलजोल भी बढ़ता है जिससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा
मिलता है|
प्रश्न ४:खानपान की मिश्रित संस्कृति में हम कई बार चीज़ों का स्वाद क्यों नहीं ले पाते?
उत्तर:हर
व्यंजन के खाने का अपना एक तौर-तरीका और स्वाद होता है| लेकिन जब हम किसी
प्रीतिभोज या समारोह में जाते हैं तो एक साथ कई प्रकार के व्यंजन प्लेट में
भर लेते हैं जिससे किसी का भी स्वाद नहीं ले पाते| उदाहरणार्थ -
छोले-कुलचे के साथ इडली साम्भर खाने पर दोनों के स्वाद का आनंद नहीं लिया
जा सकता |
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