Cbse Class 9, Ncert Hindi (Khsitij Bhag 1), Chapter 9 (Kabeer - कबीर) - Sample Questions and Study Materials

 

NCERT (CBSE) Hindi Guide 
Class 9 (Kshitij Bhag 1), Chapter 9 - कबीर
प्रश्न १: कबीर का जीवन परिचय दीजिए।
उत्तर: कबीर के जन्म और मृत्यु के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कबीरदास का जन्म सन् १३९८ ई. में काशी में हुआ। ऐसी मान्यता है कि उन्हें एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया और लोकलाज से बचने के लिए लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया। नीरू और नीमा नामक मुस्लिम दमप्ती ने उसका पालन-पोषण किया। कबीर ने विधिवत शिक्षा नहीं पाई थी परन्तु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखनेवाले कबीर ने इश्वर के नाम पर चलनेवाले हर तरह के पाखण्ड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया।
प्रश्न २: कबीर की रचनाओं की साहित्यिक विशेषताएँ तथा भाषा-शैली के बारे में लिखें।
उत्तर: कबीर संत थे। उनहोंने निराकार इश्वर के प्रति अपनी भक्ति प्रकट की। उनका विश्वास था कि सच्चे प्रेम और ज्ञान से ही इश्वर मिल सकते हैं। वे हिंदू और मुसलमान दोनों में एक ही इश्वर का निवास मानते थे।
कबीर की भाषा अनमेल खिचड़ी है। उसमें राजस्थानी, पंजाबी, अरबी-फारसी, गुजराती आदे शब्दों का मिला-जुला प्रयोग है। कबीर की भाषा कैसी भी अनगढ़ क्यों न हो, वह ह्रदय के भावों को प्रकट करने में पूरी तरह समर्थ है। कबीर एक उच्चकोटि के व्यंग-लेखक हैं। उनकी सभी रचनाएँ कबीर-ग्रंथावली में संकलित हैं। बीजक, रमैनी और सबद नाम से उनके तीन काव्य-संग्रह हैं। सिख धर्म के गुरु-ग्रन्थ साहब में उनकी वाणी को स्थान मिला है।
प्रश्न ३: "मौकों कहाँ ढूँढे बन्दे, . . . . स्वांसों की स्वाँस में॥"
(क) इस पद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ख) कबीर इसमें क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर:
(क) कवि इसमें स्वयं निराकार ब्रह्म मनुष्य को संबोधित करते हुए कहता है - हे मनुष्य! तू मुझे अपने से बाहर कहाँ ढूँढ़ता भटक रहा है? मैं तो तेरे बहुत नज़दीक हूँ। न मस्जिद में; न मुसलामानों के तीर्थ काबा में निवास करता हूँ, न हिन्दुओं के कैलाश पर्वत पर। अतः इन जगहों पर मुझे क्यों खोंज रहा है? तुम्हारा भटकना व्यर्थ है। न तो मैं किसी विशेष क्रिया करने से मिलता हूँ, न किसी कर्मकांड से। न मैं योग-साधना करने से मिलता हूँ, न संसार को छोड़कर संन्यासी बनने सब उपरी दिखावे हैं। मैं तो सब जगह व्याप्त हूँ। यदि सच्चा खोंजने वाला भक्त हो, जिसके मन में मुझे पाने की सच्ची ललक हो, तो मैं तुंरत ही उसे दर्शन देता हूँ। मुझे पाने के लिए तो पल-भर की सच्ची लगन ही काफी है। कबीरदास अपने भक्तों को संबोधित करते हुए कहतें हैं - सुनो भाई संतों! वह परमात्मा सब प्राणियों में विद्धमान है। जैसे साँस तुम्हारे भीतर है, वैसे परमात्मा भी तुम्हारे भीतर निवास करता है। वही प्राण बनकर तुम्हारे भीतर समाया हुआ है। अतः उसे खोजना है तो मन में खोजो, बाहर नहीं।
(ख) कवि इसमें यही कहना चाहते हैं कि परमात्मा मन्दिर, मस्जिद या धार्मिक तीर्थों में नहीं है। न ही वह किसी बाहरी दिखावे है। उसका निवास तो कण-कण में है, प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में है। बस उसे सच्चे मन से खोजने की आवश्यकता है।
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3 comments:
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  1. ncert books are the short divided books and in very compressed forms..
    it contains all the topic but the explanation in them are not upto the mark..hence,it create somehow difficulty for the students to read and couldn't understand the brief explanation of the topic or subject.therefore, students have to join the commercial tution classes after the schools to understand the text in ncert books which create problem in time management and the arise of burden and the pressure.. so , ncert books should be more advanced and practical technology should be given more because almost in all the schools no practical technology and education given to them..

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  2. तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि.सं 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वे कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकते हैं?

    जबकि वास्तविकता यह है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

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