NCERT (CBSE) Hindi, Vasant Bhag 2
Class VII, हिमालय की बेटियाँ
Solutions of Ncert Textbook Exercise Questions (अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर)
प्रश्न १(क): दूर से देखने पर नदियाँ लेखक को कैसी प्रतीत होती थीं?
उत्तर: दूर से देखने पर नदियाँ लेखक को गंभीर, शांत और अपने आप में खोई हुई, किसी शिष्ट महिला की भाँति प्रतीत होती थीं।
प्रश्न १(ख): नदियों की गोद की तुलना किससे की गयी है?
उत्तर: लेखक के मन में नदियों के प्रति आदर और श्रद्घा के भाव थे। उनकी धाराओं में डुबकियाँ लगाने पर उसे माँ, दादी, मौसी या मामी की गोद जैसा ममत्व प्रतीत होता था।
प्रश्न २(ख): लेखक को नदियों की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आकर्षित किया?
उत्तर: नदियों का पहाड़ों से टकराकर उछलना-कूदना खिलखिलाकर हँसना, अनेक भाव-भंगिमाएँ बदलना और उल्लास के साथ बहने की विशेषताएँ लेखक को आकर्षित करती है।
प्रश्न ३(क): तेज़ वेग से बहती नदियों को देखकर लेखक के मन में क्या विचार उठा?
प्रश्न १(ख): नदियों की गोद की तुलना किससे की गयी है?
उत्तर: लेखक के मन में नदियों के प्रति आदर और श्रद्घा के भाव थे। उनकी धाराओं में डुबकियाँ लगाने पर उसे माँ, दादी, मौसी या मामी की गोद जैसा ममत्व प्रतीत होता था।
प्रश्न २(ख): लेखक को नदियों की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आकर्षित किया?
उत्तर: नदियों का पहाड़ों से टकराकर उछलना-कूदना खिलखिलाकर हँसना, अनेक भाव-भंगिमाएँ बदलना और उल्लास के साथ बहने की विशेषताएँ लेखक को आकर्षित करती है।
प्रश्न ३(क): तेज़ वेग से बहती नदियों को देखकर लेखक के मन में क्या विचार उठा?
उत्तर: तेज़ वेग से बहती नदियों को देखकर लेखक के मन में
विचार उठता है की कौन-सा लक्ष्य है इन नदियों का, जिसे प्राप्त करने के
लिए ये इतनी तेज़ी से बह रही हैं। अपने पिता के अपार प्रेम को पाकर भी न
जाने इनके ह्रदय में किसके प्रेम को पाने की चाह है।
प्रश्न ४(ख): 'उत्तर में विराट मौन' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: ऊंची-ऊंची चोटियों से जब नदियाँ मैदानों की ओर आगे बढ़ जाती है तो पूरी उत्तर दिशा का वातावरण शांत हो जाता होगा।
प्रश्न ५(क): सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उदगम के बारे में लेखक का क्या मत है?
उत्तर: लेखक का कहना है के सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उदगम का कोई विशेष स्थान नहीं है। ये तो हिमालय के ह्रदय से निकली, करूणा की बूँदों से निर्मित ऐसी दो धाराएँ हैं जो बूँद-बूँद के एकत्रित होने पर महानदों के रूप में परिवर्तित हुई हैं।
प्रश्न ४(ख): 'उत्तर में विराट मौन' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: ऊंची-ऊंची चोटियों से जब नदियाँ मैदानों की ओर आगे बढ़ जाती है तो पूरी उत्तर दिशा का वातावरण शांत हो जाता होगा।
प्रश्न ५(क): सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उदगम के बारे में लेखक का क्या मत है?
उत्तर: लेखक का कहना है के सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उदगम का कोई विशेष स्थान नहीं है। ये तो हिमालय के ह्रदय से निकली, करूणा की बूँदों से निर्मित ऐसी दो धाराएँ हैं जो बूँद-बूँद के एकत्रित होने पर महानदों के रूप में परिवर्तित हुई हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न १: नदियों को माँ मानने की परम्परा हमारे यहाँ काफी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर: नदियों को माँ का स्वरुप तो माना ही गया है लेकिन लेखक नागार्जुन ने उन्हें बेटियों, प्रेयसी व बहन के रूपों में भी देखा है।
प्रश्न २: सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गयी हैं?
उत्तर: नदियों को माँ का स्वरुप तो माना ही गया है लेकिन लेखक नागार्जुन ने उन्हें बेटियों, प्रेयसी व बहन के रूपों में भी देखा है।
प्रश्न २: सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गयी हैं?
उत्तर: सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय की दो ऐसी नदियाँ हैं जिन्हें एतिहासिकता के आधार पर पुल्लिंग रूप में नद
भी माना गया है। कहा जाता है की ये दो ऐसी नदियाँ हैं जो दयालु हिमालय की
पिघले हुए दिल की एक-एक बूँद से निर्मित हुई हैं। इनका रूप विशाल और विराट
है। इनका रूप इतना लुभावना है कि सौभाग्यशाली समुद्र भी पर्वतराज हिमालय की
इन दो बेटियों का हाथ थामने पर गर्व महसूस करता है।
प्रश्न ३: काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
प्रश्न ३: काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
उत्तर:
नदियाँ हमें जल प्रदान कर जीवन दान देती हैं। ये युगों-युगों से पूजनीय व
मनुष्य हेतु कल्याणकारी रही हैं। इनका जल भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने में
विशेष भूमिका निभाता है। मानव के आधुनिकीकरण में जैसे बिजली बनाना, सिंचाई
के नवीन साधन आदि में इन्होंने पूरा सहयोग दिया है। मानव ही नहीं अपितु
पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए जल बहुत जरूरी है।
इनी कल्याणकारी होने पर भी नदियों को कल-कारखानों से निकलने वाले विष रूपी प्रदूषित जल व रसायन पदार्थ, लोगों द्वारा दूषित किया गया जल जैसे - कपड़े धोना, पशु नहलाना व अन्य कूदा-करकट भी अपने आँचल में ही समेटना पड़ता है, लेकिन फिरभी ये नदियाँ कल्याण ही करती हैं। 'अपार दुःख सहकर भी कल्याण' केवल माता ही कर सकती है।
इसीलिये हम कह सकते हैं कि काका कालेलकर का नदियों को लोकमाता की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं।
इनी कल्याणकारी होने पर भी नदियों को कल-कारखानों से निकलने वाले विष रूपी प्रदूषित जल व रसायन पदार्थ, लोगों द्वारा दूषित किया गया जल जैसे - कपड़े धोना, पशु नहलाना व अन्य कूदा-करकट भी अपने आँचल में ही समेटना पड़ता है, लेकिन फिरभी ये नदियाँ कल्याण ही करती हैं। 'अपार दुःख सहकर भी कल्याण' केवल माता ही कर सकती है।
इसीलिये हम कह सकते हैं कि काका कालेलकर का नदियों को लोकमाता की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं।
Ok
ReplyDeleteOk for mi
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