Class 9, NCERT Hindi Kshitij Bhag 1
CBSE Guide - Solutions of CBSE Sample Questions - CBSE Notes
उपभोक्तावाद की संस्कृति
Question 1: उपभोक्तावाद क्या है ?
Solution: उपभोक्वाद का अर्थ है - उपभोग को ही जीवन का सर्वस्व मानना। इसका परिणाम यह है कि मनुष्य भोग के लिए जीता है। जिसके पास भोग के साधन तथा उत्पाद है, वही सबसे मूल्यवान है।
Question 2: विज्ञापन के क्या-क्या खराबी है ?
Solution: विज्ञापन के कई खराबी हो सकते हैं। भारत में उपभोक्तावादी संस्कृति का विकास करने में विज्ञापनों का बहुत बड़ा हाथ है। दरअसल, उपभोक्तावाद की संस्कृति में विज्ञापन सेना का काम करते हैं। विज्ञापनों का प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म तथा सम्मोहक होता है। इसके प्रभाव में आनेवाला व्यक्ति इनके वश में हो जाता है। हम वही खरीदते हैं जो विज्ञापन हमें दिखाता है। विज्ञापन हमें वस्तुओं के गुणवत्ता से सही परिचय करा सकता है। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है, अधिकतर विज्ञापन हमारे अन्दर भ्रम और उस वस्तु के प्रति आकर्षण पैदा करता है।
Question 3: विज्ञापन के क्या-क्या अच्छाई है ?
Solution: विज्ञापन के कई अच्छाई हो सकते हैं -
- किसी वस्तु, विचार, कार्यक्रम या सन्देश के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापन अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है।
- जब ग्राहक बहुत सारी विविधताओं में फँस जाता है तो विज्ञापन ही निर्णय कराने में सहायक होते हैं।
- विज्ञापन हमें सठिक वस्तुओं के गुणवत्ता से परिचय कराता है।
- यह मनोरंजन का भी साधन है।
- प्रभावकारी होने के नाते विज्ञापनों में समाज को प्रभावित करने की अद्भुत शक्ति है।
- विज्ञापन सरकार, व्यापार तथा समाज के लिए वरदान है।
Question 4: उपभोक्तावाद की संस्कृति में विज्ञापनों की भूमिका पर अपना विचार प्रकट करें।
Solution: उपभोक्तावाद की संस्कृति में विज्ञापन सेना का काम करते हैं। वे उपभोक्तावाद को भड़काते हैं। नक़ली माँग खड़ी करते हैं। लोगों की लालच बढ़ाते हैं जिससे उनमें ज़रुरत न रहने पर भी वस्तुओं को खरीदने तथा उन्हें भोगने की इच्छाएँ जागृत हो जाते हैं। हर विज्ञापन वस्तुओं को नए ढंग से पेश करता है। इससे उपभोक्ता को पुरानी वस्तु बेकार लगने लगती है। उदाहरण के तौर पर पेस्ट या साबुन को ही लें - इनके बिभिन्न प्रकार, उपभोक्ता को पागल बना डालते हैं।
आजकल उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के कारण हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। सामाजिक संबंधों में दूरी आ रही है। विज्ञापन और प्रचार-प्रसार की शक्तियाँ हमें सम्मोहित कर रही हैं। हमें यह समझना चाहिए कि विज्ञापनों का एक बहुत बड़ा सामाजिक दायित्व है। विज्ञापनों में समाज को प्रभावित करने की शक्ति सरकार, व्यापार तथा समाज के लिए वरदान हैं। परन्तु गलत हाथों में पड़कर इनका दुरूपयोग हो रहा है। इस दुरूपयोग से बचा जाना चाहिए।
आजकल उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के कारण हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। सामाजिक संबंधों में दूरी आ रही है। विज्ञापन और प्रचार-प्रसार की शक्तियाँ हमें सम्मोहित कर रही हैं। हमें यह समझना चाहिए कि विज्ञापनों का एक बहुत बड़ा सामाजिक दायित्व है। विज्ञापनों में समाज को प्रभावित करने की शक्ति सरकार, व्यापार तथा समाज के लिए वरदान हैं। परन्तु गलत हाथों में पड़कर इनका दुरूपयोग हो रहा है। इस दुरूपयोग से बचा जाना चाहिए।
Question 5: भारत में उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार के पीछे मुख्य कारण क्या है ?
Solution: भारत में उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार तथा विकास के पीछे यहाँ के सामंती संस्कृति का मुख्य योगदान रहा है। ये सामंती तत्व आज भी भारत में मौजूद हैं। केवल सामंत बदल गए हैं परन्तु संस्कार अब भी वही हैं। दूसरा मुख्य कारण है पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में आज हम अपनी परंपराओं और पहचान को तिलांजलि दे रहे हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार के पीछे एक और मुख्य कारण है - विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के तत्व।
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