Hindi Essay (Rachna / Nibandh): Durga Puja
दुर्गा पूजा (Durga Puja, an Indian Festival)
दुर्गा पूजा को 'दशहरा', 'विजयादशमी', और 'नवरात्र पूजा' भी कहते हैं। दुर्गा शक्ति की देवी कही जाती हैं। यह हिंदुओं का एक प्रसिद्ध व धार्मिक त्यौहार है। यह पर्व बंगाल, गुजरात, बिहार, उत्तरप्रदेश, ओड़िशा जैसे राज्यों में बड़ी तैयारी और धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा का आरंभ कब हुआ, इसके संबंध में अनेक मत हैं। इसकी अनेक पौराणिक कथाएँ देश के भिन्न-भिन्न भागों में प्रचलित है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने इस दशमी के दिन रावण पर विजय प्राप्त किए थें। इसी स्मृति में आजतक विजया दशमी का उत्सव मनाया जाता है। दूसरी कथा के अनुसार , जिस दिन माँ दुर्गा ने चंडी बनकर देवताओं के शत्रु महिषासुर का वध किया, उसी दिन से यह पर्व मनाया जाता है। इस पूजा के आरंभ की कथा का चाहे जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि इस दिन सत्य की विजय और असत्य की पराजय हुई थी, देवताओं की जीत और राक्षसों की हार हुई थी। इसी खुशी में भारत के लोग दुर्गा पूजा का पर्व मनाते हैं एवं सभी आपस में भेद-भाव भुला कर एक दूसरे से गले मिलते हैं।
आश्विन के शुक्लपक्ष के आरंभ में कलश स्थापन होता है और उस दिन से दुर्गाजी की पूजा आरम्भ हो जाती है। यह पूजा दशमी तक चलती है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बड़ी धूम-धाम से पूजा की जाती है। नवमी तक 'दुर्गासप्तशती' का पाठ होता है। दशमी को यज्ञ की समाप्ति होती है। यह दिन बड़ा ही शुभ माना जाता है।
भारतीय परिवारों में अच्छे काम का शुभारंभ इसी दिन किया जाता है। कोई नए काम हो तो वह भी इसी दिन से आरंभ की जाती है। यह पूजा दस दिनों तक चलती है। सप्तमी के दिन दुर्गा जी की प्रतिमा किसी पवित्र स्थान पर स्थापित की जाती है जिसकी पूजा दशमी तक चलती है। कहीं-कहीं दुर्गा मंदिरों में स्थायी मूर्तियाँ भी रहती हैं। कहा जाता है भगवान श्रीराम ने भी दुर्गाजी की पूजा की थी और उन्हें दुर्गाजी की ही सहायता से विजय प्राप्त हुई थी। दुर्गाजी की महत्ता का यही कारण है। दुर्गा पूजा के दिनों लोग नाच, गाना, संगीत और नाटक में सुधबुध खोकर आनंद की लहरों में डूब जाते हैं। छोटे-बड़े सभी नए-नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे के घरों में जाते हैं, अच्छे-अच्छे मनपसंद भोजन करते हैं। बच्चे और स्त्रियाँ रंगे-विरंगे कपड़े पहनकर बाहर घूमने जाते हैं। जिधर देखो, उधर आनंद और उल्लास का सागर लहराता दिखायी देता है।
ईन सबों के अलावा दुर्गा पूजा का सामाजिक महत्ता भी है। दुर्गा पूजा आश्विन मास (महीने) में होती है। वर्षा ऋतु के अविराम बारिश से जब लोगों का मन उबने लगता है, आसमान से काले बादल छंटने लगते हैं तभी से लोग माँ दुर्गा की आगमनी बाजा और उत्सव के बारे में सोच कर झूमने लगते हैं। उस समय देश की जल वायु अच्छी होती है, वाणिज्य-व्यापार की भी उन्नति होती है। लोग भ्रमण करने को निकलते हैं, बाज़ारों में कपड़े-गहने तथा अन्य सामान खरीदने-बेचने वालों की भीड़ लग जाती है। इस समय नई-नई फसलें और हरी सब्जियां खाने को मिलती हैं, खाना आसानी से पचता है। वर्षा के उपरांत बीमारी कम हो जाती है।
दुर्गा पूजा वास्तव में शक्ति को पाने की कामना से की जाती है जिससे संसार की सभी प्रकार की बुराइयों का नाश किया जा सके। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने सब देवी-देवताओं की शक्ति एकत्र करके दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध करके धर्म की रक्षा की थीं, उसी प्रकार हम एक जुट होकर अपनी बुराइयों पर विजय प्राप्त करके मानवता को बढ़ावा दे सकें, यही दुर्गा पूजा का मुख्य उद्देश्य तथा संदेश है।
दुर्गा पूजा का आरंभ कब हुआ, इसके संबंध में अनेक मत हैं। इसकी अनेक पौराणिक कथाएँ देश के भिन्न-भिन्न भागों में प्रचलित है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने इस दशमी के दिन रावण पर विजय प्राप्त किए थें। इसी स्मृति में आजतक विजया दशमी का उत्सव मनाया जाता है। दूसरी कथा के अनुसार , जिस दिन माँ दुर्गा ने चंडी बनकर देवताओं के शत्रु महिषासुर का वध किया, उसी दिन से यह पर्व मनाया जाता है। इस पूजा के आरंभ की कथा का चाहे जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि इस दिन सत्य की विजय और असत्य की पराजय हुई थी, देवताओं की जीत और राक्षसों की हार हुई थी। इसी खुशी में भारत के लोग दुर्गा पूजा का पर्व मनाते हैं एवं सभी आपस में भेद-भाव भुला कर एक दूसरे से गले मिलते हैं।
आश्विन के शुक्लपक्ष के आरंभ में कलश स्थापन होता है और उस दिन से दुर्गाजी की पूजा आरम्भ हो जाती है। यह पूजा दशमी तक चलती है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बड़ी धूम-धाम से पूजा की जाती है। नवमी तक 'दुर्गासप्तशती' का पाठ होता है। दशमी को यज्ञ की समाप्ति होती है। यह दिन बड़ा ही शुभ माना जाता है।
भारतीय परिवारों में अच्छे काम का शुभारंभ इसी दिन किया जाता है। कोई नए काम हो तो वह भी इसी दिन से आरंभ की जाती है। यह पूजा दस दिनों तक चलती है। सप्तमी के दिन दुर्गा जी की प्रतिमा किसी पवित्र स्थान पर स्थापित की जाती है जिसकी पूजा दशमी तक चलती है। कहीं-कहीं दुर्गा मंदिरों में स्थायी मूर्तियाँ भी रहती हैं। कहा जाता है भगवान श्रीराम ने भी दुर्गाजी की पूजा की थी और उन्हें दुर्गाजी की ही सहायता से विजय प्राप्त हुई थी। दुर्गाजी की महत्ता का यही कारण है। दुर्गा पूजा के दिनों लोग नाच, गाना, संगीत और नाटक में सुधबुध खोकर आनंद की लहरों में डूब जाते हैं। छोटे-बड़े सभी नए-नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे के घरों में जाते हैं, अच्छे-अच्छे मनपसंद भोजन करते हैं। बच्चे और स्त्रियाँ रंगे-विरंगे कपड़े पहनकर बाहर घूमने जाते हैं। जिधर देखो, उधर आनंद और उल्लास का सागर लहराता दिखायी देता है।
ईन सबों के अलावा दुर्गा पूजा का सामाजिक महत्ता भी है। दुर्गा पूजा आश्विन मास (महीने) में होती है। वर्षा ऋतु के अविराम बारिश से जब लोगों का मन उबने लगता है, आसमान से काले बादल छंटने लगते हैं तभी से लोग माँ दुर्गा की आगमनी बाजा और उत्सव के बारे में सोच कर झूमने लगते हैं। उस समय देश की जल वायु अच्छी होती है, वाणिज्य-व्यापार की भी उन्नति होती है। लोग भ्रमण करने को निकलते हैं, बाज़ारों में कपड़े-गहने तथा अन्य सामान खरीदने-बेचने वालों की भीड़ लग जाती है। इस समय नई-नई फसलें और हरी सब्जियां खाने को मिलती हैं, खाना आसानी से पचता है। वर्षा के उपरांत बीमारी कम हो जाती है।
दुर्गा पूजा वास्तव में शक्ति को पाने की कामना से की जाती है जिससे संसार की सभी प्रकार की बुराइयों का नाश किया जा सके। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने सब देवी-देवताओं की शक्ति एकत्र करके दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध करके धर्म की रक्षा की थीं, उसी प्रकार हम एक जुट होकर अपनी बुराइयों पर विजय प्राप्त करके मानवता को बढ़ावा दे सकें, यही दुर्गा पूजा का मुख्य उद्देश्य तथा संदेश है।
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